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सोमवार, 17 सितंबर 2012

घास की राजनीति


अहहा हा, क्या बात है !! लोगों को अभी भी कांग्रेस घास यानि parthenium और pl-480 याद है. मगर ये कैसे भूल गये कि ये हमारी मजबूरी थी. देश में खाने को अन्न नहीं था, सूखे पे सूखे पड़े जा रहे थे, कोई हमारी मदद को तैयार नहीं था. जो मिल जाए, वही सही वाली बात थी. parthenium को कौन देखता, घटिया स्तर के अनाज के लिए मार हो रही थी. quarantine पर कौन ध्यान देता, जब पूरा का पूरा दरवाजा खुला था कि कुछ मिल जाए. हरित क्रांति याद नहीं आती. लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गाँधी ने विपक्ष के विरोध के बावजूद (खर्च बढ़ेगा) मेक्सिकन गेंहू आयात किया था और रासायनिक उर्वरक की खरीद पर  राजकोष से व्यय किया था. ये वो प्रयत्न था जिसने भारत को खाद्य-याचक से खाद्य-निर्यातक में बदल दिया. कहाँ 1950 का 50mton और कहाँ 2011 का 250mton. 

देश तभी आगे बढ़ सकता है जब सब मिल कर काम करें. हर बात पे टांग खींचना कहाँ की देशभक्ति है. कांग्रेस ने ग़लतियाँ की हैं. आपातकाल उनमें से एक है. पर इसके लिए सही कामों को नहीं भुलाया जा सकता. चलिए, कांग्रेस के एक-एक कारनामों को पलटते हैं जैसे : बैंक का राष्ट्रीयकरण ख़त्म हो (बैंक अधिकारी सोचे) , राजाओं के प्रिवी पर्स की बहाली हो ( पैसे कौन हम आयकर से भरेंगे ) , हरित क्रांति ख़त्म हो ( अफ़सोस, ये अब नहीं हो सकता ) , बांग्लादेश फिर से पाकिस्तान में जा मिले ( भयि मैं तो ये नहीं चाहता ). 

भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति-विशेष के अंदर होता है, न कि किसी विचारधारा के. क्या बंगारु लक्ष्मण के भ्रष्ट्र होने से सारी भाजपा खराब हो गयी ? नहीं ना. इसमें भी वाजपेयी जैसे लोग हैं.
भारत 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद लगे प्रतिबंधों को तभी सह सका जब देश में खाने का अन्न था. आज हम-आप तभी प्राइवेट सेक्टर में सॉफ्टवेर इंजिनीयर और एग्ज़िक्युटिव हैं जब 1992 के आर्थिक सुधारों ने विदेशी निवेश का रास्ता खोला था. बाद में आई किसी सरकार ने चाहे वो वाजपेयी की हो या गुजराल की, सभी ने इसको आगे बढ़ाया.
किसी 1960 के ग़रीब का चेहरा याद कीजिए और parthenium . और हाँ उस ग़रीब का धर्म भी याद कीजिएगा. नहीं याद आएगा, क्योंकि ग़रीबों का एक ही धर्म और एक ही दल (पार्टी) होता है-भूख.

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