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शुक्रवार, 24 मार्च 2017

बी प्रैक्टिकल !

थैंक यू फॉर 90 वोट्स।
इरोम को हारना तो था ही। आज नहीं तो कल। भावनाओं पर एक बार-दो बार चुनाव जीते जा सकते हैं, इससे ज्यादा नहीं।पीछे कंस्ट्रक्टिव वर्क का आधार रहने से सम्भावना बनती है। यहाँ तो यह भावनाएं भी अनशन तोड़ने से और विवाह कर लेने से टूट चुकी थीं। ऐसा ही है संसार।

बात तो यह भी है कि लोग इस हार के मजे लेते हुए दिख रहे हैं। कारण यह कि वह सेना के विशेषाधिकार वाले कानून के विरोध में थी और कथित वामपंथी धड़े का समर्थन उसे प्राप्त था। "बी प्रैक्टिकल" से लेकर अखंडता-सुरक्षा के तमाम बहाने मौजूद रहते हैं। लगता है अखंडता और सुरक्षा के स्वयंभू ठेकेदार वही हैं !
विरोध होना ही चाहिए। आर्मी के नाम पर राष्ट्रवाद चमकानेवाले बाकियों के मुंह तो बंद कर न पाएंगे पर ऐसे ही राक्षसी ठहाके लगाएंगे।
कोई कानून सही है या गलत , इसपर कई तरह के विचार हो सकते हैं। अक्सर कानून उतना काम नहीं करता जितना जनचेतना काम कर जाती है। कई तरह की बातें हैं । सारी बातों का समुच्चय ही सही पिक्चर दिखा सकता है। मगर यदि केवल एक का कहना ही सही माना जायेगा तो ऐसे में अल्पमत में रहना श्रेयस्कर है।
समाज का पतन एक दिन में नहीं होता। और जब होता है तब दिखता नहीं। आज भी रावण रामनामी चादर ओढ़े साधु का वेश बनाकर आता है।

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