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शुक्रवार, 24 मार्च 2017

राम

राम किसी भी संस्कृति, किसी भी समूह-समुदाय से परे हैं। वह तुलसी के राम हैं और नहीं भी हैं। उनका जन्म अयोध्या में होकर भी नहीं हुआ । उनके पिता दशरथ हैं भी और नहीं भी। अभिमन्यु का प्रसंग स्मृति में आता है । अभिमन्यु मर चुका था। अर्जुन से इस दुःख के कारण लड़ा नहीं जा रहा था। कृष्ण उसे स्वर्ग में अर्जुन से मिलवाने ले गए। अभिमन्यु ने प्रणाम तक न किया। कहा कि न जाने किस जन्म में मैं आपका पिता रहा होऊंगा। जब अभिमन्यु और अर्जुन बहुल हो सकते हैं तो राम की लीला कैसे समझी जा सकती है ? बालकाण्ड के "नाना भांति राम अवतारा" से लेकर " हरि अनंत हरि कथा अनन्ता" की बातें अनंत न होते हुए नही अनंत हैं । इसपर भी जानने का दावा किया नहीं जा सकता।
तो वो कौन लोग हैं जो राम को देश-काल से बाँधने की कोशिश करते हैं ! वह जो जानने का दावा करके उनको सीमित करने की कोशिश करते हैं !! कोर्ट में खड़ा कर देते हैं !!! क्या मजाक है! जिन्होंने मंदिर तोड़ा या ना तोड़ा ,उससे ज्यादा अपमान तो आप कर देते हैं । वह भी भक्त होने का दावा करते हुए। 
वह "अपराधी" होता है जो महिमा न जानते-समझते हुए विध्वंस करता है। वह "पापी" होता है जो सबकुछ जानते हुए पूरी धारणा को दूषित कर देता है।

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