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शुक्रवार, 24 मार्च 2017

सबका साथ सबका विकास

जड़ से साफ़ न करो तो
पीपल के कोमल पौधे
दरख्त बन दीवारों को तोड़ जाते हैं।
अगर सर्जरी न करो तो
मरहम से मिटाया घाव
वक्त के नासूर बन जाते हैं।
कोई मुद्दा छोटा-पुराना नहीं होता।
प्राथमिकता बनाना अलग बात है, फिर भी,
दबाये गए मुद्दे फिर उभर आते हैं।
वक्त के साथ इनकी फितरत भी है बदलती।
ये समाधान नहीं हैं खोजते फिर, बल्कि,
अहमों के टकराव बनकर रह जाते हैं।
बात इतनी भी होती तो चल जाता।
एक बार भिड़ लें, फिर मामला संभल जाता।
आते हैं जब तीसरे मध्यस्थ, कहीं से,
मामले और उलझ-बिगड़ जाते हैं।

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