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सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

देश को मैंने क्या दिया?


एक प्रश्न उठा था जेहन में - देश ने मेरा क्या किया? देश ने मुझको क्या दिया? बात उस समय की है जब मैं अपने कुछ मित्रों के साथ आज से 5-6 साल पहले एक फिल्म देखने सिनेमा हॉल गया हुआ था. राष्ट्र गान से शुरुआत हुई. सभी उठ खड़े हुए. अचानक नजर पड़ी तो पाया कि एक बंदा बैठा आराम से पॉपकॉर्न के मजे ले रहा है. खैर राष्ट्र गान खत्म हुआ. देखा कि एक महिला उस युवक से झगड़ रही थी कि वह खड़ा क्यूं नहीं हुआ. उस युवक का एक ही जबाब था- मैं एक डॉक्टर हूँ और मुझे समझ में आता है कि मुझे क्या करना है. बात आगे बढी तो उस युवक ने एक प्रश्न दागा-देश ने मुझको क्या दिया जो मैं खड़ा हौऊं. खैर तबतक फिल्म शुरु हो चुकी थी और सब सब शांत होकर देखने में मशगूल हो गये. सवाल एक वाक्य का है पर आग लगा देनेवाला है.
देश को अगर हम विधि और विधान से जोड़ते हैं तो राज्य की अवधारणा सामने आती है और राज्य के चार अवयवों में से एक है जनसंख्या अर्थात हम. इसका अर्थ एक ही निकलता है कि राज्य के निर्माण की जिम्मेदारी हमारी भी है. हमने क्या किया? क्या यह पूछना उचित रहेगा उस डॉक्टर की तरह जिसको डॉक्टर बनाने पर 80% व्यय सरकार का है, जिसने मात्र 5000-10000 सालाना फीस देकर लाखों की पढ़ाई देश को दोष देते हुये निकाल दी और जो अपनी आगे की जिंदगी किसी निजी अस्पताल या अपने निजी क्लीनिक पर मोटी फीस ऐंठ कर गुजारनेवाला है? संविधान ने सबको बराबरी का हक दिया है. सबको समान अधिकार है आगे बढ़ने का. फिर भी कुछ लोगों का कहना है कि उनके धर्म के लिये, उनकी जाति के लिये देश ने अभी तक कुछ नहीं किया. फिर प्रश्न उठता है कि करेगा कौन? क्या ये आप नहीं हैं? लोगों का और मेरा भी कहना है कि नेता भ्रष्ट हैं. कह देना बहुत ही आसान है. पर ये नेता कौन हैं? हम ही तो, हमारे ही भाई-बंधु तो. हममें ही छुपे हुए लालच को जब एक बड़ा मंच मिल जाता है तो वह घोटालों के रूप में अवतरित हो हमारी ही क्षुधा को तृप्त करता है. बात कुछ यूँ है कि हमें अपने द्वारा किये गये छोटे-छोटे 100...1000 की बेईमानी नहीं दिखती और करोड़ों के बड़े घोटाले आँखों के सामने ताण्डव करते नजर आते हैं. इस स्वतः उत्पन्न लोभ के रस से आह्लादित हम फिर भी यही कहते हैं कि देश ने हमारे लिये क्या किया .
अपने समाज की दुर्दशा से ज्यादा हमें मंदिर-मस्जिद के मुद्दे ज्यादा प्रियकर लगते हैं. हम धर्म के नाम पर लाखों की भीड़ का हिस्सा बन सकते हैं, पर जब कोई देशहित की बात कर रहा हो तो उसके साथ रहे 2-4 की टाँगें खींचना अपना कर्तव्य समझते हैं. हमें धर्म देश से ज्यादा प्यारा है फिर भी हम धर्म के बजाय देश से पूछते हैं कि देश तुमने मुझको क्या दिया?

हम नहीं चाहते कि हमारे ही पिछड़े भाई हमारी जगह पर बैठें और हम यह भी नहीं चाहते कि किसी योग्य को उसका स्थान मिले. हमें देश से उम्मीद है कि वह हमारे लिये कुछ और करेगा जबकि हम स्वयं किसी की उम्मीद पर कुंडली मर बैठे हैं.

हम राजनीति को गंदी कहते हैं और उसमें जानेवाले को भ्रष्ट. पर उसी राजनीति को ओर अपने स्वार्थ के लिये पूजते हैं. कहते हैं कि इन नेताओं ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया और फिर भी उन्हीं को चुनकर ताज पहनाते हैं.

बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी. एक ही प्रश्न सारी बातों का उत्तर है. देश हमपर निर्भर है या हम देश पर? देश को हम बनाते हैं या देश हमें? देश ने हमें क्या दिया या फिर हमने देश को क्या दिया? मेरी समझ में ये ज्वलंत प्रश्न किसी की जिंदगी को बदल डालने की क्षमता रखते हैं, कोई खुद से पूछकर तो देखे.

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

नोबेल पुरस्कार 2013 भारत को


सन 2013, नोबेल पुरस्कारों की घोषणा का महीना चल रहा था. भौतिकी, रसायन शास्त्र, चिकित्सा इत्यादि में मिले नाम विश्व-पटल पर चुके थे. एक दिन अर्थशास्त्र के नाम की उद्घोषणा भी हो गयी.
कल
रात के 12 बजनेवाले थे. दिन भर की थकान के बाद हमारे श्री सुनसोहन सिंह जी सोने की तैयारी में जुटे थे. बिस्तर पर गये ज्यादा देर भी हुई थी कि दूरभाष यंत्र ने बांग लगा दी. अनमने हो उठे तो पाया कि सचिव महोदय फोन पर थे. कहा कि ओबामा जी लाइन पे बने हैं.
हदकरी जी अभी-अभी लौटे थे. अजपा(आर्यावर्त जनता पार्टी ) की वार्षिक राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक थी. अधिक करमुक्त सम्पत्ति के मामले में फँसे बाबा कामदेव को समर्थन देते रहने का फैसला सर्वसम्मति से लिया गया था. समाचार देखने के लिये टी वी. चालू किया. ब्रेकिंग न्यूज़ थी.
बाबा कामदेव थोड़े मोटे हो गये थे. योग और भोग का तारतम्य थोड़ा गड़बड़ा गया था. चिंता ने गीता का स्थान ग्रहण कर लिया था. सी.बी.आइ. की सर्पकुंडली में फँसे बाबा का डंसे जाना अब वक्त दो वक्त की ही बात थी. अचानक स्वामी कालतृष्ण की आवाज आई.
नृपेंद्र धोदी तीसरी बार चुनाव जीत चुके थे. कल उन्हें दूसरे प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिये जाना था, शायद इसलिये सवेरे ही निद्रा के अंक में समा चुके थे.
कोमलयम और कायावती के समर्थकों में आज मार-पीट हो गयी थी. आरोपों-प्रत्यारोपों के दैविक दौर के बाद दोनों अपने-अपने शयन कक्ष में जा चुके थे. दोनों की सी.बी.आइ. वाली चिरंतन समस्या का तात्कालिक समाधान केन्द्र सरकार ने कर दिया था. अतः समय काटने चर्चा में बने रहने के लिये ये दैविक दौर वक्त की माँग बन गये थे.
तमता सरजी ने कंगाल प्रदेश में कार्टून अधिनियम लागू कर दिया था. एफ.डी.आइ. के मसले पर बुरी तरह मात खाने के बाद फिलहाल किसी मुद्दे की तलाश में थी.
आतिश कुमार जी सुखाड़ प्रदेश पर वर्ल्ड बैंक की सुप्रचारित टिप्पणी से आजकल बहुत खुश चल रहे थे क़ि उनके आवास स्थल पर कूड़ा डालने की घटना ने उनका मन उद्वेलित कर दिया. धोदी जी पर वो जरा और तीक्ष्ण हो गये थे, जिसके कारण यदा-कदा आजपा की ओर से भी जबाब मिलने लगे थे.
आग लागरे ने सरेआम सुखाड़ प्रदेश को मरुस्थल की संज्ञा दे डाली थी और कहा था कि मरुस्थली कांटे को ज्वारभाटा प्रदेश से निकाल फेंको. भाषाओं का समन्वय भी अच्छा रहा जब हिन्दी मीडिया ने आग जी के अपने पर तोहमत लगाने वाले मराठी संवाद को जी भर कर दिखाया
करुणाबधी और गरलगलिता के चिरपरिचित चिरंतन खेल चालू थे. विगत आद्रा सास मुनिया के प्रताप से अब राज्य सभा की शोभा बढ़ा रहे थे. बाहुल आंधी, साले साहब अभी भी युवा दल के नेता बने हुये थे.
बजरिवाल अभी भी जागे हुये थे. कल स्वयं अन्ना की पोल खोलने का दावा किया था, जिससे समस्त राजनीतिक दलों में खुशी का माहौल बन पड़ा था. विगत एक साल में कइयों की पोल खोलनेवाले बजरिवाल किसी को भी सजा दिला पाये थे.
 अन्ना ने मौन व्रत रखा हुआ था
आज सुबह
सुबह उठते ही सुनसोहन सिंह जी ने अपने सचिव को झाड लगाई कि कुछ भी पता नहीं रखते हो. खैर अब सारे देश को पता चल चुका था. पुरस्कार विश्व स्तर पर बढ़ती मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिये सिंह साहब द्वारा प्रस्तुत एक फॉर्मूले पर दिया गया था. फॉर्मूले की संकल्पना थोड़ी पुरानी थी, पर सही समय पर सही प्रस्तुति और उपयोगिता ने इसे प्रकाश में ला दिया. जी हाँ यह फॉर्मूला था भ्रष्टाचार का जिसने मुद्रास्फीति के दौरान रुपये की बढी मात्रा को सिर्फ सीमित किया , अपितु रुपये की उर्घ्वगामी गतिशीलता को मँहगाई के सानिध्य में फिर से बाज़ार में उतार दिया. विश्वव्यापी मंदी जिसने कुछ सालों पहले भारत में भी स्थान बनाया था, इस ब्रम्हास्त्र को सह पायी. भ्रष्ट्राचार का यह बाज़ार-नियन्तक स्वरूप इससे पहले अंजाना था.
हमारे बिगविजय सिंह जी ने प्रेस में बयान दे डाला. उन्होने एक 1000 वर्ष पुराने ग्रंथ भ्रष्टाचार शास्त्र से कुछ श्लोक उधृत करते हुये कहा कि सुनसोहन जी ने पृष्ठ संख्या 45-46 से इसकी प्रेरणा ली है. किताब आउट ऑफ स्टॉक हो गई.
आजपा ने सुनसोहन जी को बधाई दी पर साथ में यह भी कहा कि इसका श्रेय सिर्फ वो लें, हमारा भी इसमें योगदान है. शायद हदकरी जी को डर लग रहा था कि कहीं रॉंगरेस पार्टी इसका फायदा आसन्न चुनाव में उठा ले. धोदी जी ने इसे आलूमार्ट कंपनी का षड्यंत्र बताया. कमलायम जी और कायावती जी ने हमेशा की तरह मुख सामने और अंगुली पीछे इंगित करते हुये कहा कि हम आपका विरोध करते हैं. वामपंथिओं ने पुरस्कार की राशि को भारत में विदेशी पूँजी का आगमन बताया और कहा कि हम किसी भी तरह की विदेशी पूँजी का भारत में प्रवेश का विरोध करते हैं. कालू कालव जी ने आतिश कुमार जी की तरह सुखसोहन जी को बधाइयाँ दी और सुखाड़ सूबे पर भी अपनी दृष्टि फिराने का आग्रह किया. आग लागरे जी को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं था और उनका पुराना रेडिओ अब भी चालू था. करुणाबधी गरलगलिता भी अपनी ही दुनिया में मगन थे.
कामदेव बाबा ने रात को ही बिगविजय सिंह जी के माध्यम से ही रॉंगरेस आलाकमान तक बधाई रूपी डिब्बे में अपनी वेदना पहुँचा दी थी. बजरिवाल ने बयान दिया कि यह पुरस्कार गलत हाथों को दिया गया है और इस बात के लिये वो स्विट्ज़र्लॅंड स्थित न्यायालय जायेंगे. भसीम त्रिवेदी के कार्टून इसबार अल्फ्रेड नोबेल के उपर बने हैं. तमता सरजी ने इस बार बजरिवाल का साथ देने का फैसला किया.
देशी विदेशी दोनों मीडिया ने इसे भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया और सुनसोहन सिंह जी को सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री.
अन्ना का मौन व्रत अभी भी चल रहा था. 

कुछ दिन बाद
सुनसोहन सिंह जी ने पुरस्कार ग्रहण किया. रॉंगरेस पार्टी ने इसी बात को मुद्दा बना कर चुनाव लड़ा. पर हार गई. आजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ सत्ता ग्रहण की.
कामदेव बाबा भी जीतकर संसद पहुंचे. उन्होने खुलेआम घोषणा की कि वो कोई पद नहीं लेंगे. इसके एवज में नयी सरकार ने उनकी श्रद्धांजलि केन्द्र को फिर से कर में रियायतें प्रदान कर दीं. 
सुनसोहन सिंह जी को सर्वश्रेष्ठ सम्मान आर्यावर्त रत्न प्रदान किया गया. सुना जाता है कि धर्मवाणी जी ने उनकी अनुशंसा की थी. बजरिवाल अब भी लोकपाल के लिये लड रहा है. भारत अगेन्स्ट करप्षन पर लगा प्रतिबंध जो कि पिछली सरकार ने लगाया था, अब भी नहीं उठा है. भसीम त्रिवेदी आजकल रिलिटी शो में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
अन्ना का मौन व्रत अभी भी चल रहा है.
 नोट- किसी भी जीवित या मृत से इस लेख की समानता मात्र एक संयोग कही जायेगी.