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शुक्रवार, 24 मार्च 2017

आइंस्टीन और गाँधी

शायद आज आइंस्टीन से सम्बंधित तिथि है। उनके "साइंस, फिलोसोफी, और रिलिजन" आर्टिकल को पढ़ना चाहिए। नील्स बोह्र से उनकी क्यों नहीं बनती थी, यह बात दर्शन के अंदर घुस कर ही पता चल सकती है। बहरहाल दो पुरानी पोस्ट.... भारत से सम्बंधित।
गांधी के निंदक (आलोचक नहीं ) आइंस्टीन की गांधी के प्रति श्रद्धा से बहुत दुखी थे। 13 दिसम्बर 1948 को अम्बाला के एक भौतिकी प्राध्यापक ने इसी क्रम में आइंस्टीन को एक पत्र लिखा। लिखा कि कैसे उनके ऐसा एक रेशनलिस्ट उस इर्रेशनलिस्ट गांधी के प्रति तनिक भी श्रद्धा रख सकता है , वह गांधी जो वैज्ञानिकता का सबसे बड़ा शत्रु है। प्रोफेसर साहब आगे लिखते हैं कि गोडसे और आप्टे उनके अर्थात आइंस्टीन के प्रति महती श्रद्धा रखते हैं और आप्टे तो उनकी थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी गोडसे को लगातार पढ़ाते रहते हैं ( आप्टे विज्ञानं शिक्षक था ) .
आइंस्टीन ने पत्र का उत्तर बखूबी दिया।
"मैंने आपका 13 दिसंबर वाला पत्र देखा और अच्छी तरह से आपकी प्रवृति को भांप गया। मैं आपसे सहमत नहीं हो सकता। यह सत्य हो सकता है कि गांधी एक सीमा तक एंटी रेशनलिस्ट हो सकते हैं किन्तु गांधी की विशिष्ट महानता उनकी नैतिकता और उसके प्रति अद्वितीय समर्पण में है। इसकी थाह नहीं लगाई जा सकती कि उन्होंने अहिंसा के प्रति भारतीयों को प्रवृत करके क्या प्राप्त किया। मेरा विश्वास है कि विगत शताब्दियों के राजनैतिक क्षेत्र में यह अबतक सबसे बड़ी उपलब्धि है- सिर्फ भारत के लिए ही नहीं , बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए। गांधी की आत्मकथा मानवीय उत्कृष्ठता के महानतम प्रमाणों में से एक है।
क्या आप सोंच सकते हैं कि मैं आपकी इस रवैये से कितना चकित हूँ यह जानते-समझते हुए भी कि आपको गांधी की महानता की सही समझ नहीं। क्या आप ऐसा विश्वास करते हैं कि अपने से अलग राय रखनेवाले की हत्या न्यायसंगत है ? "
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क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ , डॉ आइंस्टीन ?
सवाल जर्मन में था और पूछनेवाला एक भारतीय। 
 प्रश्नकर्ता ने सवाल जारी रखते हुए कहा कि पॉलिटिक्स के बारे में नहीं है। मैं यहाँ आपसे कुछ सीखने के लिए आया हूँ और पॉलिटिक्स के बारे में मुझे लगता है कि मेरे पास भी आपको देने के लिए कुछ है। लेकिन मानव मस्तिष्क के उच्चतर स्तर पर हमें आपकी जरुरत है। भारत में मैं कहा करता हूँ कि हमारी शताब्दी में केवल तीन महान हुए हैं - महात्मा गांधी , बर्नार्ड शॉ और आप। बर्लिन में मैंने कहा था कि हमारे समय में केवल दो बार सोंचा गया , महात्मा गांधी और परमाणु ऊर्जा। एक जा चुके हैं और आपकी खोज मृत्यु का स्रोत बना बैठा है। मानव मस्तिष्क को इस ठहराव से कैसे बाहर निकाला जाए ? क्या आप कोई नया जुड़ाव देखते हैं जो विचारों को मुक्त कर उन्हें खोजों की नई यात्रा पर भेजे ?

बातें और भी हुईं। जब दोनों अलग होने लगे तो आइंस्टीन ने कहा -‘It is so good to meet a man – one gets so lonely.’
हाँ , बातें अब इंग्लिश में होने लगी थीं। 
प्रश्नकर्ता राममनोहर लोहिया थे।

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